भवन निर्माण में आज कल अत्याधुनिक तकनीक और उपकरणों का उपयोग हो रहा है, तभी तो दुबई का बुर्ज खलीफा, टोक्यो का स्काई ट्री जैसे आधुनिक बिल्डिगं देखने को मिलते है। पर जब क्रेन और परिवहन जैसी अत्याधुनिक तकनीक नहीं थी तब भी भारत में हैरान कर देने वाले वास्तुकला एवं स्तापत्य कल से नानाप्रकार के भवन, मदिर आदि बने थे।
तंजावुर, तमिलनाडु
यहाँ है भगवान शिव का 1000 साल पुराना वृहदेश्वर मंदिर, और इस मंदिर की बनावट यानी इसकी वास्तु एवं स्तापत्य कला लोगो को अपने दातो तले ऊँगली दबा देने के लिए मजबूर कर देती है। यह मंदिर ऐतिहासिक भारतीय वास्तु कला का नायाब करिश्मा है।
तक़रीबन 216 फुट की उचाई का बन हुआ ये मंदिर करीब 130,000 टन ग्रेनाइट से निर्मित है, और चौकाने वाली बात ये है की तंजावुर के आस पास करीब 60 किलोमीटर तक न कोई पहाड़ है और ना कोई पत्थरो की चट्टान।
तो ये भरी भरकम पत्थर कहा से ? कहते है की 3000 हाथियों के मदद से मिलो दूर से इन पत्थरो को यहाँ लाया था, मंदिर का वास्तु या स्थापत्य गूथ या पहेली (Interlock or Puzzle Technique) पर बना है, इसमें कोई सीमेंट या प्लास्टर का उपयोग नहीं किया गया है, यानी दो पत्थरो के बीच कुछ भी नहीं होता है।
ये देखा गया है की समय के साथ दूसरी कही बड़ी इमारते थोड़ा झुक रही है, लेकिन 1000 साल बाद भी भगवान् शिव का वृधेश्वर मंदिर बिलकुल सीधा खड़ा है, इसकी वजह है इसकी बनावट, इसकी एक और वजह है ! इसका आधार जो की इतना चौड़ा है की इतने उचाई वाले मंदिर को इतने सालो से इसको सीधा खड़ा रखे हुए है।
इस मंदिर की कही विशेषताओं में सबसे ख़ास है इसका शिखर या कुंभम कहते है 81,000 किलोग्राम का एक ही पत्थर से निर्मित है, इतना भारी शिखर इतना ऊपर कैसे रखा गया होगा !
उस समय में जब कोई तकनिकी नहीं थी तो इसे इतना ऊपर कैसे पहुंचाया गया होगा ये सोच कर ही पसीना निकल जाता है !
यहाँ की एक और हैरान कर देने वाली चीज है ये नंदी या बैल (Bull), हमारे भगवान् शिव का वाहन नंदी इन्हे भी एक ही पत्थर में निर्माण करके बनाया गया है इसकी उचाई है 13 फुट जरा सोचो इसे तराशने में कितना समय लगा होगा !
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Nandi |
तंजावुर में 1000 साल पुराने भगवान् शिव के मंदिर की भव्य भारतीय वास्तुकला को नमन है।
Nice super
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